अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानक बांक नही

"इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकत

अकबर इलाहाबादी के इस शेर से बहुत पहले हिंदी का एक कवि इसी बात को ब्रजभाषा मे लिखकर गया है-- अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेकु सयानक बांक नही अर्थात प्रेम में सयाने लोगो के लिए कोई जगह नही है। बुद्धि से तो गुणा-गणित होता है,सौदे होते हैं प्रेम में तो बस कोई दिल मे उतर जाता है और उसके बाद कुछ भी उसके अलावा अच्छा नही लगता। रीतिकाल के कवियों में घनानंद की कविताएं जितनी मार्मिक हैं उससे कहीं ज्यादा मार्मिक तो उनका जीवन है इसीलिए तो उन्होंने लिखा--मोहि तो मेरे कवित बनावत। घनानंद अगर बुद्धि से सोचते तो उन्हें एक वेश्या से प्रेम कैसे हो सकता था?वेश्या शब्द ही जिस समाज मे गाली हो उससे प्रेम करने की जुर्रत कोई भला आदमी कैसे कर सकता था। प्रेम भी कैसा जो इकतरफा था लेकिन वो प्रेम कितना गहरा था जिसने घनानंद को उस राजा से विद्रोह करने की ताकत दे दी जिसके आश्रय में वो खुद मीर मुंशी बनकर रहते थे। वो प्रेम कैसा था जिसमे प्रेमी ने कभी ये उम्मीद ही नही की ,ये सोचा ही नही कि सामने उसकी प्रेयसी भी उसे प्रेम करती है या नही। उसके लिए तो इतना ही काफी था कि वो उसे प्रेम करता है,सच भी तो है प्रेम कोई सौदा तो है नही जिसमे दोनो तराजू पर बराबर-बराबर भावनाएं रखकर तौला जाए,प्रेम करने से पहले हम शर्त तो नही लगाते की सामने से हमे उतना ही प्रेम मिले। घनानंद को जब दरबार से निकाला जाता है तो वो सुजान को अपने साथ चलने के लिए कहते हैं लेकिन सुजान मना कर देती हैं। घनानंद मना करने के बाद सुजान की हत्या नही करते,उससे घृणा नही करते बल्कि अपनी कविताओं से उसे अमर कर देते हैं। सुजान के बिना उनका जीवन दर्द का समंदर बन जाता है लेकिन उस आह में सुजान के प्रति कहीं घृणा नही है बस एक मौनमधि पुकार है, उस दर्द को वो खुद सहते हैं और दर्द भी कैसा है--

रैना दिना घुटबो करे प्राण,झरे अंखिया दुखिया झरना सी प्रीतम की सुधि अंतरतम में कसके सखि ज्यों पसुरीन में गांसी। कहते है कि पसली की चोट बहुत गहरी होती है वो दिखाई नही देती घनानंद को भी प्रेम में जो पीड़ा मिली है वो पसली की चोट जैसी है। कभी उनका मन होता है कि वो बादल बनकर सुजान के आंगन में बरस जाए कभी दर्द की इंतेहा में लिखते हैं- तुमको हे हरि हेरु कहाँ धरती में धसू या आकाश चिरु। अहमदशाह अब्दाली के सैनिक जब वृंदावन पहुंचे और उन्हें पता चला कि घनानंद राजा के मीर मुंशी थे तो उन्होंने घनानंद से कहा कि जो कुछ तुम्हारे पास है निकालो। घनानंद के पास क्या रहता उन्होंने दो मुट्ठी वृंदावन की मिट्टी उठा कर उड़ा दी। अहमद शाह अब्दाली के सैनिकों ने घनानंद का हाथ काट दिया। कहा जाता है कि अंतिम कविता घनानंद ने उसी खून से लिखी जिसमे सुजान का नाम है। आप कहेंगे ये सब ओवररेटेड कहानी है आज का समय दूसरा है। समय कितना भी बदल जाये प्रेम का मूल्य तो एक ही है त्याग,बलिदान अपने प्रिय के लिए दुख उठाकर भी उसकी भलाई चाहना। आज प्रेम प्रस्ताव अस्वीकार करने पर लोग प्रेमिका के चेहरे पर एसिड फेंक देतें है,उसके फ़ोटो वीडीओ वायरल कर देते या ऐसा करने की धमकी देते हैं,हत्या कर देते हैं वो घनानंद के इस मूल्य को कहां समझेंगे। घनानंद का जीवन हो या "उसने कहा था" कहानी का पात्र लहनासिंह ,ये प्रंसग साहित्य के प्रति प्रेम पैदा करते हैं, और हमे और ज्यादा मनुष्य बनाते हैं।